वाह रे चुनाव आयोग! भला तेरा क्या बिगड़ जाता?

वाह रे चुनाव आयोग! भला तेरा क्या बिगड़ जाता?
जय भगवान गुप्त राकेश

– जय भगवान गुप्त राकेश
जी हां, व्यापारी बंधुओं बड़े गजब की चाल चली इस बार चुनाव आयोग ने। आप समझ गए होंगे कि बात हो रही है दो प्रदेशों में विधानसभा चुनावों की। वैसे तो कुल चार-पांच प्रदेश थे जिनमें चुनाव होने थे मगर केवल दो ही इस योग्य समझे गए कि हां चुनाव करा दिए जाएं क्योंकि जम्मू-कश्मीर में प्राकृतिक आपदा ने पैर पसार लिए थे और दूसरी जगह भी कोई छोटा-मोटा कारण बीच में आ गया था, इसलिए हरियाणा और महाराष्ट्र में ही इनका आदेश दिया गया।
यहां तक तो सब ठीक है। अगर लेखक राजनीतिक होता तो कह सकता था कि दोनों ही प्रदेशों में चूंकि कांग्रेस का शासन था इसलिए केंद्रीय सरकार द्वारा इन्हें निशाने पर लिया गया, पर मैं इस बात के लिए यह लेख नहीं पेश कर रहा बल्कि इससे भी और गहरी चाल जो चली गई वह मतदान की तिथि और उसकी मतगणना की तिथियों की घोषणा में व्यापार जगत से जो बदला लिया गया वह बहुत ही कष्टकारक और चतुरता से पूर्ण है। बल्कि यूं कहा जाए कि अत्यधिक दुष्टतापूर्ण है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी और हो भी जाए तो भी जब दिल जल रहा है तो फिर उससे बुरा हो भी क्या सकता है। फिर तो दुखी व्यक्ति कुछ भी कह ही सकता है।
तो अब सुनिए दुख की बात कि हमारे सम्मानीय देश के एकमात्रा राजधानी में बैठे चुनाव आयोग ने मतगणना की तारीख 19 अक्टूबर तय करके देश और समाज से खूब हिसाब चुकता किया है। अब तो आप मेरा इशारा समझ ही गए होंगे कि मैं क्यों इतना व्यथित हूं और सभी व्यापारियों की हित चिंता में दुबला हुआ जा रहा हूं।
प्रिय बंधुओ! जैसा कि आप जानते हैं कि दीवाली साल में एक ही बार आती है और समस्त व्यापारी वर्ग इससे बड़ी भारी आशाएं सालभर लगाए रखता है और चकोर की तरह अपने लक्ष्य चंद्रमा को निहारता रहता है। मगर यहीं तो चुनाव आयोग ने डंडी मार दी और इतने जोर से मारी कि व्यापार जगत की खुशियों को तार-तार कर दिया। अब देखिये ना दीवाली 23 अक्टूबर की है और अगर मतदान की तारीख भी उसके बाद की होती तो सारे ही लोग मिल-जुलकर हर्षोल्लास से इसकी खुशी को दोगुला-तीगुना कर देते मगर अब बेचारे जो 19 तारीख को अपना मुंह लटकाने पर मजबूर हो जाएंगे उनके लिए तो दीवाली दीवाला बन जाएगी और इस प्रकार यह छोटी-सी दुर्भावना से परिपूर्ण चतुराई लाखों लोगों की खुशियों पर तुषारापात कर देगी।
विस्वाश है कि आप मेरी बात पूरी तरह साफ-साफ समझ गए होंगे क्योंकि अब हरियाणा में दीवाली तो केवल 90 की होगी (जो नेता विधायक चुने जाएंगे) और शेष 1261 कोपभवन में निवास करने को विवश होंगे और जहां पर 288 का चुनाव होना है यानि महाराष्ट्र में वहां तो और भी अधिक महा शोक की सुनामी बह रही होगी। ऐसे में मुंह से केवल एक ही बात निकलती है-वाह रे चुनाव आयोग! खूब बदला लिया अगर मतगणना भी सिर्फ चार दिन बाद रख देता तो कौन-सा आसमान गिर जाता? और इतना सा करने में भला तेरा क्या बिगड़ जाता?
विशेष निवेदन : इसके साथ ही अपने सभी व्यापारी बंधुओं से विशेष निवेदन है कि भविष्य में दीवाली की मिठाई चुनाव आयोग को भी भिजवाया करें ताकि फिर कभी आपसे इस कदर मीठा-मीठा प्रहारक बदला ना लें और अपने इस व्यवहार को प्यार भरी फुहार में बदल लें। अग्रिम धन्यवाद सहित।

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