डीएवी के छात्रों ने समझा सम्भाव का अर्थ

डीएवी के छात्रों ने समझा सम्भाव का अर्थ
satyug darshan,

Todaybhaskar.com
Faridabad| भूपानी स्थित सतयुग दर्शन में बने ध्यान कक्ष की शेभा देखने गुरुग्राम के डीएवी स्कूल के छात्र-छात्राएँ पहुंचे| ध्यान-कक्ष की बनावट में निहित विशिष्ट अर्थ को स्पष्ट करने के पश्चात‌ उन्हें समझाया गया कि समता ही योग है यानि आत्मा-परमात्मा की एक अवस्था का प्रतीक है। समता मूलाधार है-समानता, एकरूपता, निष्पक्षता व धीरता की। इससे मन में विषमता नहीं पनपती। इसीलिए सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ के अनुसार समभाव नजऱों में करने पर, मनुष्य के हृदय में, सजन-वृत्ति का विकास होता है, और फिर वह इसी विचारधारा अनुरूप, सबके साथ समदर्शिता का आचार-व्यवहार करता हुआ, सदा अफुर व आनन्दमय बना रहता है।
समभाव के अर्थ को स्पष्ट करते हुए फिर बताया गया कि समभाव राग-द्वेष का उपशमन कर, जन्म-मरण, रोग-सोग, खुशी-गमी, मान-अपमान, अमीरी-गरीबी, दु:ख-सुख, विजय-पराजय, लाभ-हानि आदि में समरस रहने का भाव है।
समभाव अपना कर जो समग्र विश्व के प्रति एक सा नज़रिया रखता है, वह न किसी का प्रिय करता है, न अप्रिय। ऐसा समदर्शी अपने-पराए की भेद-बुद्धि व द्वन्द्वों से परे हो अर्थात्‌ समस्त पापों व संघर्षों से छुटकारा पा, सर्वथा निराकुल व शांत हो जाता है।
यह भी कहा कि समभाव की साधना को परिपक्व तभी माना जाता है जब समग्र विश्व एकरूपता से दिखाई देता है। इसीलिए तो जिसका मन समभाव में स्थित हो जाता है वह जीते-जी ही हर शै में परब्रह्म परमेश्वर का अनुभव कर संसार पर विजय प्राप्त कर लेता है।
अत: उपस्थित बच्चों व अध्यापकों से अनुरोध किया गया कि आप ममत्व बुद्धि से रहित होकर, समभाव अनुरूप जीने की पद्धति को अपनाओ क्योंकि इससे भिन्न पद्धति को अपनाने पर न तो जगत की और न ही जीवन की सार्थकता को प्राप्त करना संभव हो सकता है और यही अभाव फिर मनगढंत व हानिकारक विचारधारा को अपनाने का हेतु बनता है। इसीलिए जात-पात, ऊँच-नीच आदि के कारण उत्पन्न होने वाली भेद-प्रवृति त्याग दो और समभाव से ओत-प्रोत हो अविलमब सबके साथ सहृदयता से सजनतापूर्ण व्यवहार करना आरमभ कर दो। याद रखो अपने सुख-दु:ख के समान दूसरे के सुख-दु:ख का अनुभव करना मानव जीवन की परम श्रेष्ठ अनुभूति है। यही वास्तव में समता का निर्मल रूप है।
ध्यान-कक्ष आए सभी बच्चों व अध्यापको को यहाँ आकर बहुत ही अच्छा लगा व उन्होंने कहा कि वे इस विषय में अपने अन्य मित्रों, परिवारजनों व सगे-समबन्धियों को भी बताएंगे ताकि वे भी यहाँ आकर जीवन जीने की सही कला सीख सकें। आप भी सजनों ऐसा कर सकते हैं।

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