बची-खुची लकडिय़ों से बना रहे साज-सज्जा का सामान

बची-खुची लकडिय़ों से बना रहे साज-सज्जा का सामान
surajkund crafts mela

18 वर्ष की उम्र से करते हुए आज पहुंचे 56 के पार
Yashvi Goyal
फरीदाबाद। महाराष्ट्र के गोंदिया जिले से बचल-खुचल लकडिय़ों से निर्मित साज-सज्जा का सामान लेकर आए पांडुरंग अंबीलाल आतराम आम के आम, गुठलियों के दाम कमा रहे हैं।
महाराष्ट्र स्थित गोंदिया जिले से 33वें अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले में पहली बार आए पांडुरंग अंबीलाल लकड़ी निर्मित साज-सज्जा का सामान लेकर आए हैं। मेले में लकड़ी निर्मित यह सामान लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। पांडुरंग ने बताया कि वह महाराष्ट्र के गोंदिया वन-विभाग में काम करते हैं। जहां उन्हें वन में साफ-सफाई और खराब पड़े हुए पेड़ को काटने के लिए सरकार की ओर से पांच सौ रुपये प्रति दिन मिलते हैं। पांडुरंग वहां से बची-खुची लकडिय़ों को घर में लाकर उन्हें लैंप, मोर, मगरमच्छ, कप, पेड़ इत्यादि रूप देकर घर में सजाने लायक बनाते हैं।
उन्होंने बताया कि वैसे तो यह लकडिय़ां बेकार जाती हैं लेकिन वह उन लकडिय़ों को घर में लाकर विभिन्न आकार देते हैं और उन पर पालिश करके उन्हें वाजिब दाम पर बेचते हैं।
18 वर्ष की उम्र से कर रहे हैं काम
पांडुरंग ने बताया कि वह 18 वर्ष की उम्र से गांदिया के जंगल में काम कर रहे हैं। उनका पूरा परिवार ही इस काम में लगा हुआ है। उन्होंने काम में से बचे हुए समय में से यह कला सीखी और आज वह अकेले ही हर माह 25 हजार रुपये कमा लेते हैं। आज उनकी उम्र 56 वर्ष की है।
युवाओं को भी सिखा रहे कला
पांडुरंग 56 वर्ष की उम्र में काम के साथ महाराष्ट्र में युवाओं को प्रशिक्षण भी देते हैं। ताकि यह कला लुप्त न हो। उन्होंने बताया कि एकात्मिक आदिवासी विकास प्रकल्प-देवरी संस्था में बैंबू हस्तकला प्रशिक्षण देते हैं। जहां उन्हें प्रति दिन 500 रुपये मिलते हैं। उन्होंने बताया कि इस कला को जीवित रखने में सरकार उनकी बहुत मदद करती है।

फोटो- सूरजकुंड मेला में अपनी कला का प्रदर्शन करते पांडुरंग अंबीलाल आतराम।

LEAVE A REPLY