सतयुग दर्शन ध्यान कक्ष में लोगों को सिखाई ध्यान की विधियां

सतयुग दर्शन ध्यान कक्ष में लोगों को सिखाई ध्यान की विधियां
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Todaybhaskar.com
Faridabad| ध्यान कक्ष में उपसिथत सजनों को समझाया गया कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है। जैविक, भौतिक तथा सामाजिक तीनों जगत में यह परिवर्तन दिखाई देता है। क्षण-प्रतिक्षण व्यतीत होते हुए समय का बदलना, दिन के बाद रात का आना, ऋतुओं का बदलना, जीवन अवस्थाओं का बदलना, क्रमवार युगों का बदलना, जीवन घटनाओं व परिस्थितियों का बदलना, मानव की आंतरिक स्थिति और व्यक्तित्व का बदलना, बार-बार उपजना-बिनसना आदि सब कुदरत के इस अटल परिवर्तन के नियम को दर्शाते हैं और जतलाते हैं कि इस जगत में कुछ भी अपरिवर्तनशील व स्थिर नहीं अपितु सब कुछ नश्वर और क्षणभंगुर है।
परन्तु समझने की बात यह है कि जो इस परिवर्तनशील सत्ता के पीछे विद्यमान अपरिवर्तनशील चिरंतन सत्ता की धारणा को अपना यथार्थ मानते हुए उस सत्य के आलोक में  विकसित विचारधारा अनुरूप अपना समभाव से विकास करता है यानि इस अनित्य देह के द्वारा इस परिवर्तनशील जगत में प्रविष्ट कर, अपनी आत्मा/परमात्मा की शाश्वत अजर-अमर व अटल अवस्था को स्वीकार, तद्‌नुकूल अपनी मनोवृत्ति, दृष्टिकोण और स्वभाव ढाल लेता है, वह ही इस क्षणभंगुर संसार की निस्सारता को जान, समय अनुसार स्वयं में आपेक्षित स्वाभाविक परिवर्तन लाने में कामयाब हो पाता है। इस प्रकार सत्य का व्यवहारिक व क्रियाशील वाहक बन वह उस ईश्वर की सर्वोत्कृष्ठ कृति होने का सत्य जग जाहिर कर परोपकारी नाम कहाता है।
फिर उन्हें कहा गया कि यदि हम युग परिवर्तन के इस महत्त्वपूर्ण संक्रमण काल को लें तो मानव जीवन के परम लक्ष्य अर्थात्‌ श्रेष्ठतम परम पद को इसी जीवन काल में प्राप्त करने हेतु, सतवस्तु का कुदरती ग्रन्थ जो यथा समय हमें आगामी स्वर्णिम युग की विशेष प्रवृत्ति यानि युग चेतना को धारण कर, तद्‌नुरूप अपनी चाल या व्यवहार ढाल कर युगधर्मी बनने का संदेश दे रहा है, उस बात को समझते हुए हमें अपनी वृत्ति, स्मृति व बुद्धि को निर्मल रखते हुए ग्रन्थ में विदित नियमानुसार अपने स्वभावों का ताना-बाना बुनना सुनिश्चित करना होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि हमें तत्क्षण ही कलुकाल के कलुषित भाव-स्वभाव छोड़, अविलम्ब सतवस्तु के उच्च व पावन भाव-स्वभाव व आचार-संहिता को अपनाने के लिए तत्पर होना होगा और ए विध्‌ उच्च बुद्धि, उच्च ख़्याल हो एकता, एक अवस्था में आना होगा। ऐसा इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि यही समय की माँग भी है।
इस माँग को समझते हुए अपने व अपने परिवार के बचाव हेतु स्थिर बुद्धि द्वारा, इस कुदरती ग्रन्थ में विदित, समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुकूल संतोष, धैर्य का श्रृंगार पहन, सच्चाई-धर्म की राह पर निष्काम भाव से चलते हुए, समाज को, राष्ट्र को व कुल विश्व को जीर्ण करने वाली मान्यताओं को समाप्त या सुसंस्कृत कर आगामी युग सतयुग की नवीन मान्यताओं को स्थापित करने वाले महापुरुष यानि नव युग के निर्माता बनना होगा। मानो इसी में हम सबका कल्याण है और इस शुभ परिवर्तन के आने पर ही समस्त मानव जाति मनमत अनुरूप स्वार्थपरता का अविचार युक्त व द्वि-द्वेष पूर्ण, दु:ख भरा चलन छोड़, परमार्थ दृष्टि अनुरूप विचारयुक्त चलन अपना पाएगी और अपने आचार-विचार व व्यवहार को ब्रह्म विचारों अनुसार अलंकृत कर, अपना जीवन सफल बनाने के साथ साथ पुन: सत्य-धर्म का परचम बुलंद कर, अखंड यश-कीर्ति को प्राप्त कर पाएगी।
जानो इसी कारज की सिद्धि के लिए यह ध्यान-कक्ष यानि समभाव समदृष्टि का स्कूल खोला गया है व इसमें आने वालों को सतयुगी आचार संहिता से परिचित करा तद्‌नुकूल ढ़लने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। आप चाहे तो आप भी इस

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