सतयुग दर्शन वसुंधरा में मनाया समभाव दिवस

सतयुग दर्शन वसुंधरा में मनाया समभाव दिवस
satyug darshan faridabad,

todaybhaskar.com
faridabad| सबकी जानकारी हेतु, एक मानव के जीवन में, समभाव-समदृष्टि की महत्ता को जानने-समझने व तदुपरान्त अमल में लाने हेतु सतयुग दर्शन ट्रस्ट द्वारा, प्रतिवर्ष दिनाँक  सात सितम्बर को, समभाव दिवस के नाम से मनाया जाता है। इस शुभ दिवस दूर-दराज यानि देश-विदेश से, हज़ारों की सं2या में श्रद्धालु, ग्राम भूपानि स्थित, सतयुग दर्शन वसुन्धरा पधारते हैं। इस वर्ष भी समभाव दिवस मनाने के लिए काफी सं2या में श्रद्धालु  वसुन्धरा पहुँचे। श्रद्धालुओं के रहने व खाने-पीने का प्रबंध ट्रस्ट द्वारा नि$शुल्क परिसर में ही किया गया है।
इस अवसर पर सतयुग दर्शन के विशाल सभागार में उपस्थित सभी माननीय अतिथियों, दिल्ली एन.सी.आर के स्कूलों के प्रधानाचार्यों एवं अध्यापकगणों, अंतर्राष्ट्रीय समभाव ओल6िपयाड परीक्षा के विजेताओं, सतयुग दर्शन ट्रस्ट की शिक्षण संस्थाओं के छात्र-छात्राओं एवं शिक्षकगणों तथा विभिन्न शहरों से आए सभी सजनों को संबोधित करते हुए ट्रस्ट के मार्गदर्शक श्री सजन जी ने कहा कि मानव परमेश्वर की सर्वोत्कृष्ट कलाकृति है।   इस विशेष कृति को ईश्वर ने समस्त अन्य प्राणियों से उसे श्रेष्ठ सिद्ध करने हेतु विशेष विवेकशक्ति रूपा गुण प्रदान किया है ताकि कुछ भी धारण करने से पूर्व, वह उसके सत्य-असत्य, भले-बुरे होने की परख कर सकें व यथार्थ स्वरूप में स्थित रहने हेतु केवल सत्य को ही अपनाएं। इस तरह यथार्थ को धारण कर, तदनुरूप एक विचारशील धर्मज्ञ इंसान की तरह सजन-भाव अनुकूल वत्र्त -वत्र्ताव करने के लिए, उस ईश्वर ने उसे समभाव-समदृष्टि का सबक दिया है और इस सबक की मर्यादा में बने रह, आत्मबोध द्वारा, जगत के समस्त प्राणियों के साथ एकसा वत्र्ताव करने का निर्देश दिया है ताकि वह ईश्वर सम शक्तिशाली बन, आत्मिक बल का प्रयोग करते हुए, जगत हितकारी बन रोशन नाम कहा सके। उन्होंने कहा कि चूंकि अब कलुकाल अपने अंतिम चरण पर है और सतवस्तु आने वाली है इसलिए मानव जाति को पुन: जाग्रति में लाने के लिए सतवस्तु के कुदरती ग्रन्थ द्वारा, परमेश्वर, समभाव-समदृष्टि का सबक पढऩे-समझने व उसे अमल में लाकर, सतयुग में प्रवेश करने का आवाहन् दे रहे हैं। श्री सजन जी ने कहा कि यह हर प्राणी के हित की बात है। अत$ इस कुदरती फरमान को समझो व अपने सहित अन्य सब जीवों का कल्याण करते हुए अच्छे इंसान बन जाओ। इस हेतु उन्होंने समस्त उपस्थित सजनों से कहा कि उठो ! जाग्रति में आओ व एक पावन व सुन्दर समाज की रचना कर, सही अर्थों में मानव कहलाओ व यश पाने के अधिकारी बनो।
सुन्दर समाज की रचना के संदर्भ में उन्होंने सजनों से कहा कि उचित सात्विक आहार-विचार व व्यवहार अपनाओ ताकि आपका मन व शरीर दोनों ही स्वस्थ, स्वच्छ और सुंदर बने रहें और सबसे प्रेम करते हुए आप सबके प्रिय बन जाओ। उनके अनुसार यह दिल से दिल मिला, परस्पर सजन भाव का व्यवहार करते हुए, अखंड एकता व एक-अवस्था में बने रहने की बात है। श्री सजन जी ने कहा कि ऐसा होने पर न केवल आपसी स6बन्धों में अपनापन पनपेगा अपितु जो भी करोगे, वह स्वार्थपरता के भाव से मुक्त रह, एक-दूसरे के हित को ध्यान में रख कर उचित ही करोगे। इस प्रकार तब सुनिश्चित ही संसारियों से तो प्यार मिलेगा ही मिलेगा साथ ही परम पिता परमेश्वर के विचारों अनुसार चारित्रिक रूप से सुन्दर होने पर, वह परम पुरूष परमात्मा भी आपको अपना लेगा। यह उस सर्वशक्तिमान परमात्मा से योग होने की बात होगी जिसके परिणामस्वरूप अटलता व अमरता को प्राप्त हो जाओगे। ऐसा होने पर आपका यह मानव जीवन सार्थक हो जाएगा और आप जन्म-मरण के चक्रव्यूह से छूट जगत विजयी कहलाओगे। उन्होंने कहा कि इस उत्तम स्थिति को प्राप्त करने हेतु सजनों आज के इस शुभ दिवस चारित्रिक सुन्दरता में बने रहना और वैसे ही आचार-विचार व आहार संहिता को अपनाना आवश्यक समझो। इस परिप्रेक्ष्य में मत भूलो कि पावन चरित्र ही एक मानव के यथार्थ मानवीय व्यक्तित्व का प्रतीक होता है और ऐसा इंसान ही नैतिक मूल्यों पर खरा उतर पाता है। अत$ स6पूर्ण मानव जाति को ऐसा ही विद्वान, गुणवान, बलवान व चरित्रवान बनाने हेतु वैश्विक स्तर पर सब मिलकर, अविल6ब परिपूर्ण व्यवस्था कायम करो। याद रखो इस महत्वपूर्ण कार्य की सिद्धि बाल्यावस्था से ही, भौतिक ज्ञान प्राप्ति के स्थान पर, आत्मिक ज्ञान प्राप्ति को प्राथमिकता देने पर ही संभव हो सकती है।
अंत में उन्होंने सबसे प्रार्थना करी कि इस धरती पर पुन$ सुख-चैन का वातावरण कायम करने हेतु त्याग भावना द्वारा यह अद6य पुरूषार्थ दिखाओ ताकि हर मानव अर्थपूर्ण जीवन जीने के योग्य बन सके। इस तरह आज समभाव दिवस के शुभ अवसर पर, मानसिक रूप से विकृत, मानव जाति के सुधार हेतु, इस कार्य सिद्धि की महत्ता व महत्व को समझो और हर मानव को उसके जीवन के वास्तविक  प्रयोजन से परिचित करा, समभाव-समदृष्टि के अनुशीलन में पारंगत बनाओ। इस हेतु याद रखो कि समभाव-समदृष्टि की युक्ति अनुसार परस्पर सजनता का व्यवहार करते हुए एकता व एक-अवस्था में बने रहना मानवता यानि मानव-धर्म को सही अर्थो में स6मानित करने की बात है। ऐसा कर दिखाने में ही सजनों अपनी आन-बान व शान समझो। आओ इस कार्य को सफ़लता पूर्ण सिद्ध करने हेतु निश्चय लेते हैं:-

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