संस्कृति सिखाता सिद्वपीठ श्री महारानी वैष्णो देवी मन्दिर

संस्कृति सिखाता सिद्वपीठ श्री महारानी वैष्णो देवी मन्दिर
सिद्वपीठ श्री महारानी वैष्णो देवी मन्दिर

यशवी गोयल
टुडे भास्कर डॉट कॉम, फरीदाबाद

प्रत्येक धर्म के अपने धार्मिक स्थल होते है जिनमें लोगों की आस्था होती है, जहां जाकर वह प्रार्थना करते हैं  मन्नत मांगते हैं तथा उस स्थान पर जाकर शांति प्राप्त करते हैं। इसी तरह लोगों में धार्मिक आस्था व धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे रहा शहर के बीचो-बीच स्थित होने के साथ-साथ हरियाणा के सर्वश्रेष्ठ मन्दिरों में से एक व लोगों के लिए आस्था का केन्द्र माना जाने वाला एक नंबर स्थित सिद्वपीठ श्री महारानी वैष्णो देवी मन्दिर आधुनिकता के दौर में लोगों  बच्चों में अपनी संस्कृति व धर्म के प्रति आदर व समान की भावना को बढ़ावा देने में महत्तपुर्ण भुमिका निभाता हैं।

मंदिर के प्रधान जगदीश भाटिया ने मंदिर की स्थापना के बारे में बताया कि सन् 1955 तक यहां पर मनयारू गांव बसा हुआ था, तथा मंदिर वाले स्थान पर गांव का तालाब बंसा हुआ था। गांव उजड़ जाने पर तालाब भी सुख गया। सन् 1979 में एम. खान की धर्मपत्नी ने अपने कर कमलो से प्राण करके लगाई थी। उन्होने बताया कि 1966 में कुछ युवक पाकिस्तान से उजड़ कर आये थे और मां वैष्णव के दीवाने थे मनयारू गांव के चाराग्रह में एक चबुतरा बनाकर जहां आज कार्यलय है श्री महारानी की निश्काम मां का गुणगान करते थे। उस समुह के प्रधान मुकन्द लाल नरूला, की सरपस्ता में जुलाई 1966 में एक चबुतरे का निर्माण किया गया। जिस पर माता की चौकी प्रतिस्थापित की गई, अौर 1965 से मन्दिर की रूपरेखा तैयार होने लगी थी।
उस समुह के प्रधान लाला मुकन्द लाल नरूला के अलावा मेहन्त हरनाम दास अरोड़ा, पोवार दास दीवान, सन्त राम नरूला, बाल मुकन्द, अमीर चन्द बब्बर, फकीर चन्द कथुरिया-2ए, किशन लाल भाटिया, पं. आत्म प्रकाशन, डी.डी.ए ग्रोवर, रमेश अरोड़ा, किशन लाल अरोड़ा, मदन लाल कालडा प्रमुख है। भाटिया ने मन्दिर के निर्माण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मन्दिर के संस्थापको ने लोगों के घरो में जागरण कराकर मन्दिर का निर्माण कार्य शुरू किया गया। सन् 1982 में माता की मुर्ति प्रतिस्थापित की गई। ही जनवरी 1982 मन्दिर का रजिस्ट्रेशन कराया गया। भाटिया ने मन्दिर के निर्माण के समय अचानक हुई घटना के बारे में बताते हुए कि जिस समय मन्दिर का निर्माण कार्य चल रहा था तब मन्दिर में पानी का टैंक भी खुद रहा था, टैंक खुदने वाला एक कर्मचारी जिसका नात सतीश था वह 30 फुट नीचे गड्डे में गिर गया लगभग पांच घंटे तक उस गड्डे में फंसा रहा और जब वह बाहर निकला तो उसने बताया कि उसे बिल्कुल चोट नही आई है और उसे लगा कि उसे नीचे से किसी ने सहारा देकर बाहर निकालने में मदद की है। उन्होने बताया कि जहां पर भी वह जागरण कराते थे हो से जो चंदा इक्टठा होता था, उसी से मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया।
मन्दिर की मान्यता: उन्होंने बताया कि मन्दिर में एक पेड़ है जो कि पीपल और बड़ का एक साथ जुड़ा हुआ है इस पेड़ पर कलावा बांध कर जो भी मन्नत मांगते है वह मन्नत पुरी हो जाती है। और जो लगातार 40 दिन तक मंदिर में जोत जलाता है, उसकी भी मन्नत पुरी होती है। मन्दिर में मां वैष्णो के साथ-साथ राधा-कृष्ण, शनिदेव, शिव परिवार, गणेश जी, राम देव, साईं बाबा की मुर्ति भी स्थापित है।
मन्दिर संस्थान में धार्मिक कार्या के साथ-साथ समाजिक कार्या में भी बढ़-चढ़ कर भाग लेते है।
संस्थान में छ बजे आरती होती है उसके बाद हवन की समाप्ती के बाद गरीबो को संस्था की तरफ से चाय, काफी, दुध, फ्रुट, पकौड़ा इत्यादि जैसी खाने की चीजे वितरीत की जाती है।

इसके अलावा गरीब कन्याओ के लिए वस्त्र, खाद्य पदार्थ तथा अति गरीब कन्याओ की शादी में बरातियो को खाना खिलाया जाता है तथा गरीब कन्याओ के लिए संस्थान सामुहिक विवाह भी कराती है जिसमें मन्दिर प्रशासन की तरफ से कन्या को कन्यादान, बारात का स्वागत  फेरे मन्दिर प्रांगण में निशुल्क किये जाते है।

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