भारतीय विज्ञान के उत्थान में ‘भागिनी निवेदिता’ का योगदान अविस्मणीयः सहस्त्रबुद्धे

भारतीय विज्ञान के उत्थान में ‘भागिनी निवेदिता’ का योगदान अविस्मणीयः सहस्त्रबुद्धे
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Todaybhaskar.com
faridabad| वाईएमसीए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, फरीदाबाद के इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग विभाग द्वारा ‘भागिनी निवेदिता के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्र निर्माण में इंजीनियर्स की भूमिका’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया।
यह व्याख्यान प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकता, लेखिका तथा शिक्षक एवं स्वामी विवेकानंद की शिष्या भागिनी निवेदिता की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में किया गया था। इस दौरान विज्ञान भारती के संगठन सचिव तथा वैज्ञानिक डॉ. जयंत सहस्त्रबुद्धे मुख्य वक्ता रहे तथा स्वामी विवेकानंद के जीवन वृतांत के माध्यम से भागिनी निवेदिता द्वारा भारत में आधुनिक विज्ञान के विकास में योगदान पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलपति प्रो. दिनेश कुमार ने की। इस अवसर पर विज्ञान भारती (हरियाणा) के संरक्षक प्रो. आरएम प्रसाद जैसवाल तथा अध्यक्ष प्रो. रंजना अग्रवाल भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारंभ विधिवत रूप से ज्योति प्रज्वलन द्वारा किया गया। विश्वविद्यालय द्वारा अक्षय ऊर्जा संसाधनों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से सोलर लाइट जलाकर कार्यक्रम के प्रारंभ कर एक नई शुरूआत की गई।
अपने मुख्य वक्तव्य में डॉ. सहस्त्रबुद्धे ने स्वामी विवेकानंद के दर्शनशास्त्र से प्रभावित आयरिश मूल की मार्गरेट एलिजाबेथ नोबेल के भागिनी निवेदिता बनने के जीवन वृतांत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ब्रिटिशकाल में उपेक्षा का शिकार रहे प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु के शोध कार्याें को पाश्चात्य जगत में पहचान व सम्मान दिलाने में भागिनी निवेदिता की अहम भूमिका निभाई। उन्होंने डॉ. बसु की वैज्ञानिक सहायक के रूप में उनके शोध पत्रों का लेखन किया तथा पाश्चात्य जगत को भारत के वैज्ञानिक अनुसंधान से परिचित करवाया। उन्होंने कहा कि भागिनी निवेदिता के प्रयासों से ही देश में जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस तथा डॉ. बोस संस्थान स्थापित की स्थापना हुई, जिससे भारत में वैज्ञानिक शोध को प्रोत्साहन मिला।
अपने संबोधन में प्रो. जैसवाल ने विद्यार्थियों को सामान्य विज्ञान के महत्व के बारे में बताया तथा देश के पहले इंजीनियर के रूप में ख्याति रखने वाले विश्वेश्वरैया गुंडप्पा के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के जीवन का अनुसरण करने के लिए भी प्रेरित किया।
प्रो. रंजना अग्रवाल ने व्याख्यान के लिए चयनित विषय को विश्वविद्यालय के संदर्भ में प्रासंगिक बताते हुए कहा कि आधुनिक विज्ञान को भारतीय विज्ञान के संदर्भ में समझने के लिए हमें भारतीय वैदिक सिद्धांतों का समझने की आवश्यकता है। उन्होंने विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञान के बीच जुड़ाव पर भी अपने विचार रखें।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. दिनेश कुमार ने बताया कि भारतीय विज्ञान को वैश्विक पहचान दिलाने प्रसिद्ध वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु के सम्मान में ही वाईएमसीए विश्वविद्यालय का नाम ‘जे सी बोस विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय’ रखने का निर्णय लिया गया है और नामकरण की प्रक्रिया अपने अंतिम चरण में है। उन्होंने कहा कि यह हरियाणा का एकमात्र विश्वविद्यालय है, जिसका नामकरण किसी वैज्ञानिक के नाम पर किया जा रहा है।

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