मेट्रो अस्पताल में ड्रिप्रेशन लेट्स टॉक विषय पर सेमिनार का आयोजन

मेट्रो अस्पताल में ड्रिप्रेशन लेट्स टॉक विषय पर सेमिनार का आयोजन
metro hospital faridabad,

todaybhaskar.com
faridabad। विश्व स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर मेट्रो अस्पताल में ’’ड्रिप्रेशन लेट्स टॉक’’ थीम को लेकर एक ‘‘इन्टरेक्टिव सेमीनार’’ का आयोजन अस्पताल परिसर में किया गया। सेमीनार में ‘ड्रिप्रेशन के कई रूप’’ व ‘‘मेकिंग डिप्रेशन कलरफुल’’ प्रमुख विषय रहें।
समारोह के मुख्य अतिथि ऑल इंडिया इन्सटीट्यूट ऑफ  मेडिकल साईंस के साइक्रेट्रिक विभाग के अधीक्षक प्रो. डा. एस. के खण्डेलवाल थे। डा. खण्डेलवाल ने बताया कि आजकल की भाग-दौड वाली जिन्दगी में डिप्रेशन एक आम समस्या है। यह किसी भी व्यक्ति को किसी भी आयु में हो सकता है।
उनके अनुसार डिप्रेशन लाइलाज नहीं है इसका इलाज किसी भी अवस्था में हो सकता है। सिर्फ  सकारात्मक सोच रखने से तथा परिवार के सहयोग से ही इस बीमारी को पूर्ण रूप से ठीक किया जा सकता है। यह पुरूषों की तुलना में महिलाओं को अधिक होता है क्योकि वे अपनी बातें दूसरों से बतलाने में हिचकती है और धीरे धीरे ये बीमारी बढ़ती चली जाती है।
डिप्रेशन के प्रमुख लक्षण उदास रहना, किसी भी चीज में आनन्द ना आना जिसमें पहले आनन्द मिलता था। थकान महसूस करना कुछ खाने को मन ना करना। डिप्रेशन के दौरान मरीज को लगने लगता है कि उसका जीवन बिल्कुल बेकार है, वह कुछ नहीं कर सकता। वह उदास रहने लगता है। अकेला महसूस करता है। उसके व्यवहार एवं विचारों में उदासीनता आने लगती है यहाँ तक की बीमारी बढऩे पर वह आत्महत्या जैसे कदम भी उठा लेते है। इस मौके पर मैट्रो अस्पताल के मैनेजिंग डायरेक्टर एवं वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा. एस.एस. बंसल ने भी इस विषय पर अपनी कुछ अहम बातें बताई। उनके अनुसार कुछ अनुवांशिक कारण जैसे अपने किसी कि मृत्यु, धन सम्बन्धी चिन्ता, लम्बें समय से किसी बीमारी से ग्रसित होना, नौकरी का खोना, घर में मतभेद आदि चीजें भी हो सकती है। उन्होंने कहा सही समय पर इलाज तथा चिन्ता से मुक्त, तनाव से बचाव, हल्का शारीरिक व्यायाम एवं पूरी नींद लेकर इस बीमारी से बचा जा सकता है। डा. सचिन मंगला, विशेषज्ञ साईक्रेट्रिक विभाग मैट्रो अस्पताल ने इस अवसर पर बताया के हम सभी कभी-कभी दुर्भाग्य (विपत्ति) के समय उदा या नाखुश महसूस करते हैं। यह एक साधारण प्रतिक्रिया है जो परेशान और दुखी करने वाली होती है और बहुत ज्यादा देर तक नहीं रहती। कभी-कभी यह भावना देर तक जारी रहती है, बहुत तीव्र होती है और रोजाना के कामों पर असर करती है, यह डिप्रेशन (उदासी) हो सकती है। उन्होने इस बात पर दबाव दिया कि सभी डिप्रेशन के मरीज को दवाईयों की जरूरत नहीं होती। डिप्रेशन का इलाज 100 प्रतिशत संभव है। डिप्रेशन का इलाज दवाईयों एवं काउसलिंग दोनों से होता है। मैट्रो अस्पताल, फरीदाबाद की एडमिन डायरेक्टर, डा. सीमा बंसल ने इस विषय पर बोलते हुए कहा कि आजकल कि लाईफ  स्टाइल में हम अपने आप व परिवार को ज्यादा वक्त नहीं दे पाते ना ही हम हम अपने परिवार में बैठकर एक दूसरे से ज्यादा बातें कर पाते है। यदि हम अपने परिवार व अपने बडों के साथ बैठकर बातें करे व उनके साथ समय व्यतीत करें तो शायद यह बीमारी हममें से शायद किसी को भी ना हो।  सेमीनार के अंत में मरीजों तथा बाहर से आये अतिथिगण सदस्यों पे अपने अनभुव शेयर किये श्रोतागण से बातचीत के दौरान डा. खण्डेलवाल ने बताया कि डिप्रेशन दिमाग में सिरोटोरिन नाम के केमिकल की कमी से होता है।

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