सतयुग दर्शन के ध्यान-कक्ष में विद्यार्थियों ने की प्रार्थना

सतयुग दर्शन के ध्यान-कक्ष में विद्यार्थियों ने की प्रार्थना
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Todaybhaskar.com
Faridabad| आज भूपानि ग्राम के सजन सतयुग दर्शन वसुंधरा पर समभाव-समदृष्टि का स्कूल देखने पहुँचे। हमारे संवाददाता द्वारा पूछने पर उन सदस्यों ने बताया कि हमने सबसे पहले मुख्य द्वार पर खड़े होकर एक अच्छे व नेक इंसान बनने का संकल्प लिया और फिर जैसे ही परिसर के अंदर प्रवेश किया तो अति सुन्दर सात गेटों को देखा जिन पर क्रम से संतोष, धैर्य, सच्चाई, धर्म, सम, निष्काम और परोपकार लिखा हुआ है। इन मानवीय गुणों के विषय में हमें बताया गया कि संतोष आत्मतुष्टि का प्रतीक है जिसकी प्राप्ति से इंसान धैर्यवान बनता है।
इसी धीरता की ताकत से इंसान अपने जीवनकाल में सच्चाई व धर्म के रास्ते पर सहजता से चल पाता है। तभी तो वह सभी कामनाओं से मुक्त निष्काम भाव से परोपकार करने की प्रकृति में ढलता है और अपने जीवनकाल में जो भी करता है जनहित को ध्यान में रखकर करता है। ऐसा इंसान ही समबुद्धि कहलाता है। इसी कारण उसका मानसिक संतुलन कभी नहीं बिगड़ता। यही श्रेष्ठता उसके लिए जीवन में हर प्रकार से उन्नति कर पाने का हेतु होती है। तभी तो वह एक अच्छे मानव की तरह जीवनयापन कर यश-कीर्ति को प्राप्त होता है।
उन सज्जनों ने आगे बताया कि इसके पश्चात हमने एकता का प्रतीक ध्यान-कक्ष यानि समभाव-समदृष्टि का स्कूल देखा और उसकी अद्‌भुत शोभा देखते ही रह गये। यहाँ हमने ध्यान-कक्ष के चारों ओर समुद्र की तरह बनायी गयी वॉटर बॉडी देखी जिसमें फव्वारे भी चल रहे थे जो हवा के ज़रिये ठंडक प्रदान कर रहे थे। इसके अतिरिक्त ध्यान-कक्ष के चारों तरफ़ बड़े-बड़े घास के लॉन व पेड़-पौधे देखते हुए हमने समभाव-समदृष्टि के स्कूल में प्रवेश किया। वहाँ हमें 1लासरूम की तरह सुंदर प्रबन्ध देखकर अच्छा लगा। इसके पश्चात हम ध्यान-कक्ष के भूतल पर पहुँचे। यहाँ हम सब बच्चों से ‘हमें शांति दो, हमें शक्ति दो’ सात बार बुलवाया गया ताकि हम सभी अपने संकल्प पर खरे उतरें व एक सत्यनिष्ठ व धर्मपरायण इंसान की तरह सदाचारिता से जीवन जी सकें। जब हम पहली मंजि़ल पर गए तो हम उस सुनहरे कक्ष तथा उसके मध्य में निर्मित जोत का नज़ारा देखकर चकित रह गए। यहाँ हमे बताया गया कि यही जोत ही आत्मा के प्रकाश का स्रोत है और यथार्थ में यह ही हमारा असली आत्मस्वरूप है। इसलिए हम सबके लिए आवश्यक हो जाता है कि हम एक दूसरे से  समभाव-समदृष्टि  की युक्ति अनुरूप व्यवहार करते हुए आजीवन सजन भाव में बने रहें। यह मन-मस्तिष्क की शांति के साथ-साथ पारिवारिक व सामाजिक शांति तथा एकता के लिए आवश्यक है। यह सुनने-समझने के बाद हम मन ही मन प्रसन्न हैं कि इस समभाव-समदृष्टि के स्कूल द्वारा कितनी उत्तम शिक्षा प्रदान की जाती है जिसको प्राप्त करना आज हर इंसान की आवश्यकता है।  हमने निश्चय लिया है कि ऐसा नेक इंसान बन हम अपने परिचितो व सगे संबंधियों को भी बताएंगे ताकि वे सब भी इस अनोखे और निशुल्क आत्मिक ज्ञान की शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूल से लाभ उठा सकें।
ट्रस्ट के प्रवक्ता ने बताया कि आकर्षक प्राकृतिक परिवेश में निर्मित भवन-निर्माण कला के इस अद्वितीय उदाहरण ध्यानकक्ष यानि ‘समभाव-समदृष्टि के स्कूल’ को अब हरियाणा सरकार द्वारा पर्यटन स्थल की मान्यता भी प्राप्त हो गई है। अत: हमें पूर्ण विश्वास है कि नैतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना व चारित्रिक उत्थान हेतु कार्यरत यह विशेष स्कूल भविष्य में समपूर्ण मानवजाति के लिए एक प्रेरणादायक श्रद्धा स्थल के रूप में विश्व-विख्यात  होगा।

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