सतयुग दर्शन वसुन्धरा पर निर्मित ध्यान-कक्ष बना आकर्षण का केन्द्र

सतयुग दर्शन वसुन्धरा पर निर्मित ध्यान-कक्ष बना आकर्षण का केन्द्र
satyug darshan faridabad,
Todaybhaskar.com
Faridabad| ग्राम भूपानी स्थित प्रमुख दर्शननीय स्थल ध्यान कक्ष अब बड़ी तेजी से सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहा है। इसीलिए वहाँ प्रतिदिन लोगों की भीड़ देखने को मिलती है। गत दिवसों में ध्यान-कक्ष की शोभा देखने पहुँचे हुए थे ‘द प्राणायाम सोसाइटी’ के सीनियर सिटीजऩ फोरम एवं इन्डो यूरापियन चैमबर आफॅ लघु एवं मीडियम एन्टरप्राइजिज़ के सदस्य, पीयूष हाइट्‌स व जोय आफॅ हेलपिंग एन0 जी0 ओ, फरीदाबाद के सदस्य, बी0 एल0 डी0 प4िलक स्कूल की चेयरपरसन सहित उनके पारिवारिक सदस्य।
उपस्थित सदस्यों को इस कैंपस के मुख्य आकर्षण केन्द्र भव्य ध्यान-कक्ष की शोभा व निर्मित बनावट की महत्ता से परिचित कराते हुए कहा गया कि इस सत्य को मानो कि एक ही परमात्मा सर्वत्र समभाव से स्थित है। इधर देखो, उधर देखो वो ही समभाव से चारों ओर यानि सर्वत्र नजऱ आ रहा है। अगर अपने अन्दर झाँक कर देखोगे तो भी मन-मन्दिर में स्थित वह ही निगाह आएगा। मन-मन्दिर में स्थित उस दर्शन को सर्व में देखो। कहा गया कि चूंकि अभी हमारा 2याल इधर-उधर, चारों तरफ उलझा व बिखरा हुआ है इसीलिए हमें उसे ईश्वर की सर्वव्याप्कता का बोध नहीं हो रहा परन्तु याद रखो जो बहादुर अपने ख्याल व भावों को हर तरफ से समेट कर समभाव में स्थित कर लेता है वही उस परमेश्वर को सर्वत्र देख पाता है। कहा गया कि एक बार समभाव नजरों में आ गया तो फिर वहीं हमारे जीने का ढंग व नज़रिया बन जाएगा। याद रखो यही मानव-धर्म के अनुरूप सही ढंग से जीवन जीना कहलाता है। इस तरह समभाव जैसे निर्मल पावन भाव को नजरों में करने से हमारी दृष्टि कंचन हो जाती है और हम समदृष्टा बन परस्पर सजन भाव यानि मैत्री भाव का व्यवहार करते हुए एकता में बने रहते हैं। इस प्रकार तब शांति व एकता का भाव हमारे मन-मस्तिष्क की एकता का प्रतीक बन जाता है। ऐसा होने पर हम जीवन में कुछ भी करने का पराक्रम दिखाने के योग्य बन जाते हैं।
सजनों को समझाया गया कि सर्वत्र समभाव से स्थित परमेश्वर को सम देखने से बुद्धि स्थिर हो जाती है। इसके विपरीत जो ऐसा नहीं करता व समदृष्टि रूपा गुण कभी भी प्राप्त नहीं कर सकता॥ तात्पर्य यह है कि तब अन्दर उदित होने वाला भाव समभाव आधारित नहीं होता। वह भेद-भाव युक्त होने के कारण विनाशकारी होता है। परिणामत: भिन्न-भिन्न भावों से युक्त होकर देखने पर विषम बुद्धि हो जाती है। फिर कोई प्रिय तो कोई अप्रिय, कोई सज्जन तो कोई दुश्मन नजर आता है। इस प्रकार अ1ल टिकाणे नहीं रहती और हम दूसरों से खुद को भिन्न समझने लगते हैं और सबसे भिन्नता वाला ही व्यवहार करते हैं। बेवजह क्रोधित हो उठते हैं जिससे आपसी एकता टूटती है। यही कारण है कि फिर हम जीवन भर आपस में लड़ते झगड़ते रहते हैं और अनेक प्रकार के कष्ट-1लेश भोगते हैं। कई दफा इसी कारण दुराचार व व्यभिचार में फँस हम ऐसे पाप कर्म कर बैठते है जिसकी वजह से हम जन्म-मरण के चक्रव्यूह में फँस जाते हैं।
सजनों को यह भी बताया गया कि समभाव से हटना अंतर्निहित संतोष, धैर्य की शक्ति को कमजोर करने व अपने आपको नष्ट करने की बात है अर्थात‌ द्वि-भाव से ग्रसित हो पर-निन्दा व बुराई करने, झूठ बोलने, गाली-गलौच करने, मारने आदि अधर्म युक्त कृत्य करने यानि वास्तव में बुरा इंसान बनने की बात है। अत: सबको संकल्प लेने को कहा गया कि अब किसी ने किसी का बुरा नहीं सोचना है, न ही बुरा बोलना है व न ही बुरा करना है। अब तो सबने आत्मदृष्टि यानि परमात्म-दृष्टि से सर्वत्र व सबमें एक ही परमेश्वर को समभाव से स्थित देखना है व आनन्दमय जीवन जीना है।
यहाँ हुई सब बातचीत को सुन-समझ कर उपस्थित सदस्यों ने कहा कि वसुन्धरा कैमपस व निर्मित समभाव-समदृष्टि के स्कूल की भव्य शोभा वास्तव में कमाल है।

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