जीवन में बिना संघर्ष कुछ भी नहीं मिलता

जीवन में बिना संघर्ष कुछ भी नहीं मिलता
brahmakumaris

Todaybhaskar.com
Faridabad| एक व्यक्ति होता है वो मूर्ति बनाकर बाजार में बेचता था है उसी से उसका खर्चा चलता है एक दिन उसके घर उसके गांव के सरपंच उसके घर आता है और उससे कहता है की गांव में जो मंदिर बना है उस मंदिर के लिए एक अच्छी और बड़ा मूर्ति चाहिए वो खुश हो जाता है और वो कॉन्ट्रेक्ट ले लेता है, क्यूंकि उसके लिए ये बहुत बड़ा कॉन्ट्रेक्ट था वो उसी दिन से लगा जाता है मूर्ति बनाने में मूर्ति के लिए पत्थर की खोज में रोज निकल जाता था|
उसको पत्थर नहीं मिलता था रोज की तरह वो पत्थर की खोज में निकल गया सुबह -सुबह उसको उस दिन एक बहुत सुन्दर पत्थर मिला वो उसे घर लाया मूर्ति बनाना शुरू कर देता है जब वो छीनी होठड़ी मरता है तो उस पत्थर से आवाज़ आती है मुझे मत मारो मुझे चोट लग रही है मुझे दर्द हो रहा है तो वो जो मूर्ति बनाने वाला होता है वो उस आवाज़ को ध्यान से सुनने की कोशिश करता है| तो फिर उस पत्थर से आवाज़ आती है मैं इतना सुन्दर हु मुझे मत मारो मुझे चोट लग रहा है|
तुम दूसरा कोई पत्थर ले लो फिर वो व्यक्ति कुछ टाइम रुक कर सोचता है फिर उस पत्थर को साइड में रख देता है फिर वो सोचने लगता है की अब मेरे पास टाइम भी नहीं है दूसरा पत्थर कहा से लाऊ फिर उसकी नजर घर में रखे पत्थर पर जाती है फिर वो सोचता है कि मेरे पास टाइम भी नहीं है|
तो इसी पत्थर से बना लेता हु फिर वो घर में रखे पत्थर से बनाने लगता है कुछ दिनों के बाद वो एक खूबसूरत गणेशा जी का मूर्ति बना देता है आखिर वो दिन आ ही जाता है जिस दिन का उसको इंतजार था|
उसके घर सरपंच आता है और उसके साथ कुछ और लोग भी आते है सरपंच पूछता है कि मूर्ति तैयार हो गई, वो कहता है जी सरपंच, मूर्ति गांव के लोगो के हाथ में दे देता है जब वो लोग मूर्ति ले कर जा रहे होते है तभी उसमे से एक आदमी का नजर उस रखी हुई पत्थर पर जाता है वो सोचता है क्यों न इस पत्थर को सीढ़ी बनाने के लिए ले लिया जाये फिर वो अपनी मन की बात सरपंच से कहता है सरपंच कहता है ठीक है ले लो मूर्ति को ले के जाते है खूब धूम धाम से मूर्ति का स्थापना करते है और उस पत्थर को सीढ़ी बना देते है|
रोज भक्त लोग उस पत्थर पर पैर रख कर जाते है वो पत्थर चिल्लाता है मुझ पर पैर मत रखो मुझे दर्द हो रहा है मुझे चोट लग रहा है मेरे ऊपर पैर मत रखो उसकी आवाज़ सुनाने वाला कोई नहीं था और नहीं किसी को सुनाई देती वो रोज -रोज चिल्लाता पर उसकी आवाज़ किसी को सुनाई नहीं देती|
एक दिन वो मराठी वाले पत्थर से कहता है तुम्हारे तो मजे है रोज तुम्हे फल फूल चढ़या जाता है मेरे ऊपर तो रोज लोग पैर रखते है तुम्हे तो रोज नहलाते है तो जो मूर्ति वाले पत्थर था वो कहता है गलती तुम्हारी है अगर थोड़ सा दर्द सहन किये होते तो आज मेरी जगह तुम होते लोग तुम्हे पूजते फिर उस पत्थर को पछतावा होता है और वो रोने लगता है फिर मूर्ति वाले पत्थर कहता है अभी रोने से क्या होगा तो सीढ़ी वाले पत्थर कहता है तो मैं क्या करू तो मूर्ति वाले पत्थर कहता है की तुम अगर सच्चे दिल से भगवन को याद करो तो तुम्हारा कल्याण होगा|
तो वो सच्चे दिल से भगवन को याद करने लगा फिर एक दिन भगवान उससे खुश हो कर एक सन्यासी को भेजता है तो सन्यासी आता है सरे गाँव वालो को मंदिर में आने को कहता है फिर सुबह होते ही सारे गाँव ,वाले इकठे होते है फिर वो सन्यासी कहता है की मैं चाहता हु की आप लोग मंदिर में जाने से पहले इस सीढ़ी को नमस्ते कर के जाओ तो सारे गाँव वाले उस सन्यासी की बात मान लेते है तो उस दिन से मंदिर में जाने से पहले लोग उस सीढ़ी वाले पत्थर को नमस्कार कर के जाते हैं|
इसलिए एक कहावत है  जिंदगी जीना आसान नहीं होता; बिना संघर्ष कोई महान नहीं, होता जब तक न पड़े हथौड़े की चोट पत्थर भी भगवन नहीं होता|

ब्रह्माकुमारीज़ ललिता की कलम से…

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